आयुर्वेद में पारा (Mercury) के नियंत्रित उपयोग की मांग तेज़, BHU विशेषज्ञ ने PM को भेजा प्रस्ताव

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BHU विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि पारंपरिक आयुर्वेदिक रसशास्त्र में पारे के नियंत्रित उपयोग की अनुमति दी जाए — चिकित्सा की दृष्टि से सुरक्षित और प्रभावी। post

वाराणसी, जून 2025 — काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के आयुर्वेद विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री को एक महत्वपूर्ण अपील भेजी है, जिसमें आयुर्वेद में संसाधित पारा (Processed Mercury) यानी रसायनशास्त्र (Rasashastra) के नियंत्रित और वैज्ञानिक उपयोग की अनुमति देने की मांग की गई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि पारंपरिक रसशास्त्र में प्रयोग होने वाला पारा पूरी तरह से शोधित, नियंत्रित मात्रा में और विशिष्ट प्रक्रियाओं से उपयोग में लाया जाता है, जो इसे सुरक्षित और चिकित्सकीय रूप से प्रभावी बनाता है। उनका तर्क है कि आयुर्वेद की कई प्रभावशाली दवाएं जैसे मकरध्वज, रस माणिक्य, रस सिंधूर आदि में पारा एक आवश्यक घटक रहा है।

इस अपील में बताया गया है कि पारा के प्रतिबंध ने न केवल शास्त्रीय आयुर्वेदिक चिकित्सा परंपराओं को बाधित किया है, बल्कि कई दवा निर्माताओं और वैद्यों के शोध व निर्माण को भी प्रभावित किया है।

BHU के विशेषज्ञों ने सरकार से आग्रह किया है कि पारे को पूरी तरह प्रतिबंधित करने की बजाय इसे वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित प्रयोगशालाओं में नियंत्रित निर्माण और उपयोग की अनुमति दी जाए।

इस विषय को लेकर देशभर के आयुर्वेद संस्थानों, निर्माताओं और नीति निर्माताओं में बहस शुरू हो गई है — कि क्या पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक मूल्यांकन के बीच संतुलन बनाकर आयुर्वेद को पुनः सशक्त किया जा सकता है?